भारत ओलंपिक में दो तीन पदक ही बड़ी कठिनाई के बाद क्यों जीत पाता है?
By- शादाब सलीम
मित्र अक्षत जैन से संवाद में एक प्रश्न सामने आया है- भारत ओलंपिक में दो तीन पदक ही बड़ी कठिनाई के बाद क्यों जीत पाता है?ओलपिंक खेलों का प्रारूप ऐसा है कि लचीले और फुर्तीले शरीर के लोग ही कुछ श्रेष्ठ कर सकते हैं और प्रतिस्पर्धा भी इन ही लोगों के बीच है।
उत्तर पूर्व भारत को छोड़कर शेष भारत की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि लोगों के शरीर अधिक लचीले नहीं है। हड्डियां अत्यंत कड़क है योगा तक मुश्किल से किया जा सकता है। फिर खानपान भी ओलिंपिक के हिसाब का तो कतई नहीं है। अत्यंत तेल घी का गरिष्ठ भोजन भारतीयों को पसंद है। दाल बाटी खाकर सोने वाले भारतीयों की भी कोई कम संख्या थोड़ी है।
फिर यदि ध्यान से देखे तो भारतीय आलसी भी है। सारे मेहनत से भागने वाले काम पकड़ते है। सरकारी नौकरी इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि कामचोरी भरपूर मिले और कोई रोकटोक वाला रहे नहीं अत्यंत राजा नौकरी। वरना सोचिए अगर आदमी को नौकरी ही करना है तो कोई कम नौकरी थोड़ी है पर आदमी भागता सरकारी नौकरी की तरफ ही है।
भारतीय मजदूर ऐसे कामचोर है कि लघुशंका करने जाए तो मूत्रालय में दस मिनट खड़े रहे जिससे हाज़री का समय बीत जाए। अगर पांच बार भी वह ऐसा कर पाने में सफल हो जाते हैं तो हाज़री के आठ घंटे में पचास मिनट तो मूत्रालय में ही बीत जाना है। इस बात की पुष्टि पाठकगण भले ही किसी फैक्ट्री के सुपरवाइजर से कर सकते हैं।भारतीयों के शरीर मोटे है चर्बिले है और फिर आदमी आलसी भी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अनेक भारतीय दिन में भी ख़ूब पैर पसारे सोते हैं।
अक्षत ने पदक नहीं जीत पाने का कारण हस्तमैथून को भी करार दिया है। यह तथ्य भी सारवान है। असल में सेक्स कुंठित समाज है। लोगों को सरलता से सेक्स उपलब्ध नहीं है। सेक्स इसलिए उपलब्ध नहीं है क्योंकि स्त्री पुरुष विभेद है। सेक्स पुरुष के लिए दंभ और स्त्री के लिए शर्म है इसलिए स्त्रियां इससे दूर ही रहना पसंद करती है और पुरुष लंपट की भांति घूमा करता है। हस्थमैथुन भी शरीर को शिथिल कर रहा है और सुस्त बना रहा है। यह बात वैज्ञानिक कारण लिए हुए हैं।
हम केवल आराम का खेल क्रिकेट खेल लेते हैं बाकी किसी खेल में हमारा नम्बर नहीं लगता। क्रिकेट भी इसलिए क्योंकि बाकी विश्व इस पर ध्यान ही नहीं देता, ब्रिटेन को छोड़कर सारे छोटे मोटे देश ही इसे खेलते हैं। शरीर की लचक का भी इसमे कोई अधिक महत्व नहीं है।भारत यदि करोड़ो रूपये खर्च कर डाले तब भी ओलंपिक में श्रेष्ठ नहीं हुआ जा सकता क्योंकि उसके केवल आर्थिक और तकनीकी कारण ही नहीं है अपितु भौगोलिक और सामाजिक कारण भी है।